भारतीय बकरियों की प्रमुख नस्लें (Major Breeds of Indian Goats )
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इसका शरीर आकार से बड़ा तथा काले रंग पर सफेद या भूरे धब्बे पाए जाते है बाल छोटे तथा चमकीले होते हैं। कान लम्बे लटके हुए तथा सर के अन्दर मुड़े हुए होते हैं। नाक उभरा रहता है ।
वयस्क नर का वजन 55-65 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 45-55 किलो ग्राम होता है। इसके वच्चों का जन्म के समय वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इसका शरीर गठीला होता है। जाँघ के पिछले भाग में कम घना बाल रहता है। इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 1.25-2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
इस नस्ल की बकरियाँ सलाना बच्चे पैदा करती है एवं एक बार में करीब 60% बकरियाँ एक ही बच्चा देती है।
इस नस्ल की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी है। औसतन यह 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है एवं एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती है। कुछ बकरियाँ एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा करती है तथा एक बार में 4-4 बच्चे देती है। इस नस्ल की मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्कता प्राप्त कर लेती है तथा औसतन 15-16 माह की उम्र में प्रथम बार बच्चे पैदा करती है।
जमुनापारी (Jamunapari) :- जमुनापारी भारत में पायी जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती है. यह दूध तथा माँस दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करती है, यह बकरियों की सबसे बड़ी जाति है। इसक रंग सफेद होता है और शरीर पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, कान बहुत लम्बे होते हैं। इनके सींग 8-9 से.मी. लम्बे और ऐठन लिए होते हैं।
यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है एंग्लोनुवियन बकरियों के विकास में जमुनापारी नस्ल का विशेष योगदान रहा है
वयस्क नर का औसत वजन 70-90 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 50-60 किलो ग्राम होता है। इसके बच्चों का जन्म समय औसत वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्र में औसतन 1.5 से 2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध तथा मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ सलाना बच्चों को जन्म देती है तथा एक बार में करीब 90 प्रतिशत एक ही बच्चा उत्पन्न करती है।
गद्दी (Gaddi):- “WhiteHimalayan goat”
यह छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद के साथ भूरा या काला धब्बा पाया जाता है।यह देखने में हिरण के जैसा लगती है। कान बहुत ही छोटा होता है। थन अच्छा विकसित होता है
वयस्क नर का औसत वजन 35-40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25-30 किलो ग्राम होता है। यह घर में बांध कर गाय की तरह रखी जा सकती है।
इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है। 2 वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक वियान में औसतन 1.5 बच्चों को जन्म देती है। इसका बच्चा करीब 8-10 माह की उम्र में वयस्क होता है।
इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ औसतन 1.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
बोअर (Boer) :–बोअर नस्ल की बकरी 1 9 00 के दशक में मांस उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीका में विकसित की गई थी “बोअर” शब्द का मतलब अफ्रीका भाषा में किसान होता हैं यह बकरी को दूध और मांस के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं यह बकरी पूरी दुनिया में मांस के लिए लोकप्रिय नस्लों में से एक माना जाता हैं
यह बकरिया की बढ़ने की छमता बहुत ज्यादा होता हैं यह तीन महीना में 30 से 35 kg की हो जाती हैं और सब से बड़ी बात यह की इसे हर मौसम में ढलने और बिमारी से लड़ने की गज़ब की छमता होती हैं
बोअर बकरी ज्यादा तर सफ़ेद रंग और उसका सर भूरा होता हैं और उनके लम्बे लटकते हुये कान होते हैं इनमें बढ़ने और बच्चा देने की छमता सब बकरियों से अलग होती हैं बोअर बकरा ज्यादा तर प्रजनन के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं यह बकरी बहुत ही ज्यादा महंगी होती हैं क्युकी यह भारत में बहुत ही काम पाई जाती हैं
अल्पाइन (Alpine) :- यह स्विटजरलैंड की है. यह मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त है. इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्रों में औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है.
एंग्लोनुवियन (Anglo-Nubian) :- यह प्रायः यूरोप के विभिन्न देशों में पायी जाती है। यह मांस तथा दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता 2-3 किलो ग्राम प्रतिदिन है।
सानन ( Saanen ):- यह स्विटजरलैंड की बकरी है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता अन्य सभी नस्लों से अधिक है। यह औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन अपने गृह क्षेत्रों में देती है।
टोगेनवर्ग (Toggenburg) :- टोगेनवर्ग भी स्विटजरलैंड की बकरी है। इसके नर तथा मादा में सींग नहीं होता है। यह औसतन 3 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
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SURESH BANA
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Bana Agro Farm में
हमारे देश में कई प्रकार की बकरिया पाई जाती हैं और जिसका इस्तेमाल लोग ज्यादातर दूध और मांस के लिए सदियों से करते आ रहे हैं हमारे भारत में अलग अलग राज्य में कई अलग नस्ल की बकरे बकरिया पाए जाते हैं जो अपने नस्ल में खास होते हैं सब से पहले मैं आपको बकरी पालन में मुख्य रूप से जो बकरी लोग पसंद करते हैं
सिरोही (Sirohi) :- सिरोही नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से राजस्थान के सिरोही जिला में पायी जाती है. यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है. इस नस्ल की बकरियाँ दूध उत्पादन हेतु पाली जाती है लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त है. इसका शरीर गठीला एवं रंग सफेद, भूरा या सफेद एवं भूरा का मिश्रण लिये होता है. इसका नाक छोटा परन्तु उभरा रहता है. कान लम्बा होता है. पूंछ मुड़ा हुआ एवं पूंछ का बाल मोटा तथा खड़ा होता है. इसके शरीर का बाल मोटा एवं छोटा होता है.
यह सलाना एक वियान में औसतन 1.5 बच्चे उत्पन्न करती है. इस नस्ल की बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता है.
Mसिरोही नस्ल की बकरिया साल में दो बार बच्चे देती हैं औसतन,जन्म वजन लगभग 3 kg होता हैं यह बकरी 30% सिंगल बच्चे जन्म देते हैं जबकि 70% मामलों में जुड़वां होता हैं दूध देने के क्षमता इसमें थोड़ी कम होती हैं यह एक दिन में सिर्फ half liter ही दूध देती हैं तथा 120 days में 65 liter दूध देती हैं
बीटल (Beetal) :- यह नस्ल दूध और मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त है। यह गुरदासपुर के पास पंजाब में पाई जाती है पंजाब से लगे पाकिस्तान के क्षेत्रों में भी इस नस्ल की बकरियाँ उपलब्ध है यह जमनापारी बकरी और मालाबारी बकरी के समान है।
इसका शरीर आकार से बड़ा तथा काले रंग पर सफेद या भूरे धब्बे पाए जाते है बाल छोटे तथा चमकीले होते हैं। कान लम्बे लटके हुए तथा सर के अन्दर मुड़े हुए होते हैं। नाक उभरा रहता है ।
वयस्क नर का वजन 55-65 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 45-55 किलो ग्राम होता है। इसके वच्चों का जन्म के समय वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इसका शरीर गठीला होता है। जाँघ के पिछले भाग में कम घना बाल रहता है। इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 1.25-2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
इस नस्ल की बकरियाँ सलाना बच्चे पैदा करती है एवं एक बार में करीब 60% बकरियाँ एक ही बच्चा देती है।
ब्लैक बंगाल ( Black Bengal ) :- यह नस्ल पूरे पूर्वी भारत में विशेषकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार में पाई जाती हैं। यह छोटे पैर वाली नस्ल है। इनका कद छोटा होता है। इसके शरीर पर काला, भूरा तथा सफेद रंग का छोटा रोंआ पाया जाता है अधिकांश (करीब 80 प्रतिशत) बकरियों में काला रोंआ होता है तथा बाल छोटे और चमकीले होते हैं।
नाक की रेखा सीधी या कुछ नीचे दबी हुई होती है। पैर कुछ नीचे कान छोटे चपटे तथा बगल में फैले होते हैं। दाढ़ी बकरे बकरी दोनों में होती है।
वयस्क नर का वजन करीब 18-25 किलो ग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता है.
वयस्क नर का वजन करीब 18-25 किलो ग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता है.
इस नस्ल की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी है। औसतन यह 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है एवं एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती है। कुछ बकरियाँ एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा करती है तथा एक बार में 4-4 बच्चे देती है। इस नस्ल की मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्कता प्राप्त कर लेती है तथा औसतन 15-16 माह की उम्र में प्रथम बार बच्चे पैदा करती है।
जमुनापारी (Jamunapari) :- जमुनापारी भारत में पायी जाने वाली अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती है. यह दूध तथा माँस दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करती है, यह बकरियों की सबसे बड़ी जाति है। इसक रंग सफेद होता है और शरीर पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, कान बहुत लम्बे होते हैं। इनके सींग 8-9 से.मी. लम्बे और ऐठन लिए होते हैं।
यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है एंग्लोनुवियन बकरियों के विकास में जमुनापारी नस्ल का विशेष योगदान रहा है
वयस्क नर का औसत वजन 70-90 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 50-60 किलो ग्राम होता है। इसके बच्चों का जन्म समय औसत वजन 2.5-3.0 किलो ग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्र में औसतन 1.5 से 2.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है। इस नस्ल की बकरियाँ दूध तथा मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ सलाना बच्चों को जन्म देती है तथा एक बार में करीब 90 प्रतिशत एक ही बच्चा उत्पन्न करती है।
गद्दी (Gaddi):- “WhiteHimalayan goat”
यह हिमांचल प्रदेश के काँगडा कुल्लू घाटी में पाई जाती है. यह पश्मीना आदि के लिए पाली जाती है कान 8.10 सेमी. लंबे होते हैं. सींग काफी नुकीले होते हैं. इसे ट्रांसपोर्ट के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. प्रति ब्याँत में एक या दो बच्चे देती है
बारबरी (Barbari) :- बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है. इस नस्ल के नर तथा मादा को पादरियों के द्वारा भारत वर्ष में सर्वप्रथम लाया गया. अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है
बारबरी (Barbari) :- बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है. इस नस्ल के नर तथा मादा को पादरियों के द्वारा भारत वर्ष में सर्वप्रथम लाया गया. अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है
यह छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद के साथ भूरा या काला धब्बा पाया जाता है।यह देखने में हिरण के जैसा लगती है। कान बहुत ही छोटा होता है। थन अच्छा विकसित होता है
वयस्क नर का औसत वजन 35-40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25-30 किलो ग्राम होता है। यह घर में बांध कर गाय की तरह रखी जा सकती है।
इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है। 2 वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक वियान में औसतन 1.5 बच्चों को जन्म देती है। इसका बच्चा करीब 8-10 माह की उम्र में वयस्क होता है।
इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरियाँ औसतन 1.0 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
सोजत (Sojat) :– सोजत नस्ल के बकरे राजस्थान के छोटे सहर सोजत में पाई जाती हैं यह पाली मारवाड़ और अजमेर मार्ग के बिच में पड़ता हैं और यही पूरे मार्ग में यह सोजत बकरी पाई जाती हैं 4 बड़े सहर हैं जहां आपको यह नस्ल की बकरी मिलेगी वो हैं Sojat, Phalodi, Pipar, Jodhpur
पहले इस नस्ल की बकरी को दूध के लिए लोग इस्तेमाल करते थे मगर आज लोग इसे मांस के लिए भी अपने इस्तेमाल में लाते हैं सोजत बकरी में यह ख़ास बात होता हैं की ज्यादा तर बकरी यह बकरा के सींग नहीं होते हैं यह बकरी का रंग सफेद होता हैं और इनके शरीर में छोटे छोटे काले धब्बे होते हैं इनके कान 8 से 10 इंच तक लम्बे होते हैं
यह नस्ल की बकरिया बकरी फार्म के लिए इस्तेमाल होती हैं जो लोग बकरी पालन करने की सोच रहे हैं उनके लिए यह नस्ल की बकरी बहुत ही लाभदायक होगी यह बहुत ही खाने पीने वाली बकरी हैं और यह 3 month में 25 से 30 kg तक बढ़ सकती हैं यह बकरी 14 month में 2 बार बच्चे देती हैं और 40% सिंगल और 60% जुड़वाँ बच्चे देती हैं और यह बकरे सभी मौसम के लिए उचित होते हैं यह बकरी औसत एक दिन में 1.5 से 2 लीटर दूध देती हैं
सुरति (Surti) :– सुरति नस्ल की बकरिया ज्यादा तर गुजरात के इलाके सूरत और बड़ौदा में पाए जाने वाली नस्ल में से एक हैं यह सूरत में ज्यादा पाई जाती हैं इस लिए इनका नाम सुरति रखा गया हैं यह नस्ल की बकरिया छोटी होती हैं इनका आकर ज्यादा बड़ा नहीं होता हैं
इनके छोटे छोटे कान और बाल होते हैं यह सफेद रंग की होती हैं और इनका शरीर का बाल चमकीला होता हैं इनकी जनसंख्या भारत में बहुत ही कम हैं गिने चुने कुछ राज्य में पाई जाती हैं
सुरति नस्ल की बकरिया बहुत ही लोकप्रिय हैं क्युकी इनकी दूध देने की छमता बाकी बकरियों से अच्छी होती हैं इन्हें ज्यादातर लोग दूध के लिए पालते हैं यह बकरिया रोज कम से कम 2 kg दूध देती हैं इनकी चलने की छमता बहुत कम होती हैं
ओस्मनाबादी (Osmanabadi) –
ओस्मनाबादी बकरिया की नस्ल ज्यादा तर तैलगंना, कर्नाटक,और महाराष्ट्र के कुछ राजय लातूर, तुलजापुर में पाई जाती हैं इनका रंग 70% कला होता हैं और 30% सफेद यह भूरे रंग के होते हैं इनका शरीर का आकर बड़ा होता हैं और पेअर लम्बे लम्बे होते हैं
यह नस्ल की बकरिया 16 से 19 महीने की उमर में बच्चा देती हैं यह साल में 2 से 3 बार बच्चे दे सकती हैं ओस्मनाबादी बकरियों को ज्यादा तर मांस और दूध के लिए इस्तेमाल में लाया जाता हैं इनकी पर्जन्य छमता अच्छी होने के कारन यह बहुत ही लोकप्रिय बकरी की नस्ल में से एक हैं
यह बकरिया एक दिन में कम से कम 1 से 1.5 लीटर दूध देती हैं और यह किसी में मौसम यह सूखे की स्थिति में भी आराम से रह सकती हैं इनका मांस बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं और यह नस्ल की बकरी की मांग लोगो में बहुत ज्यादा हैं यह बकरी की कीमत 4 से 6 हज़ार तक होती हैं अपने बकरी फार्म में पालन कर के आप यह बकरी से ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं
विदेशी बकरियों की प्रमुख नस्लें (Major breeds of foreign goats )
पहले इस नस्ल की बकरी को दूध के लिए लोग इस्तेमाल करते थे मगर आज लोग इसे मांस के लिए भी अपने इस्तेमाल में लाते हैं सोजत बकरी में यह ख़ास बात होता हैं की ज्यादा तर बकरी यह बकरा के सींग नहीं होते हैं यह बकरी का रंग सफेद होता हैं और इनके शरीर में छोटे छोटे काले धब्बे होते हैं इनके कान 8 से 10 इंच तक लम्बे होते हैं
यह नस्ल की बकरिया बकरी फार्म के लिए इस्तेमाल होती हैं जो लोग बकरी पालन करने की सोच रहे हैं उनके लिए यह नस्ल की बकरी बहुत ही लाभदायक होगी यह बहुत ही खाने पीने वाली बकरी हैं और यह 3 month में 25 से 30 kg तक बढ़ सकती हैं यह बकरी 14 month में 2 बार बच्चे देती हैं और 40% सिंगल और 60% जुड़वाँ बच्चे देती हैं और यह बकरे सभी मौसम के लिए उचित होते हैं यह बकरी औसत एक दिन में 1.5 से 2 लीटर दूध देती हैं
सुरति (Surti) :– सुरति नस्ल की बकरिया ज्यादा तर गुजरात के इलाके सूरत और बड़ौदा में पाए जाने वाली नस्ल में से एक हैं यह सूरत में ज्यादा पाई जाती हैं इस लिए इनका नाम सुरति रखा गया हैं यह नस्ल की बकरिया छोटी होती हैं इनका आकर ज्यादा बड़ा नहीं होता हैं
इनके छोटे छोटे कान और बाल होते हैं यह सफेद रंग की होती हैं और इनका शरीर का बाल चमकीला होता हैं इनकी जनसंख्या भारत में बहुत ही कम हैं गिने चुने कुछ राज्य में पाई जाती हैं
सुरति नस्ल की बकरिया बहुत ही लोकप्रिय हैं क्युकी इनकी दूध देने की छमता बाकी बकरियों से अच्छी होती हैं इन्हें ज्यादातर लोग दूध के लिए पालते हैं यह बकरिया रोज कम से कम 2 kg दूध देती हैं इनकी चलने की छमता बहुत कम होती हैं
ओस्मनाबादी (Osmanabadi) –
ओस्मनाबादी बकरिया की नस्ल ज्यादा तर तैलगंना, कर्नाटक,और महाराष्ट्र के कुछ राजय लातूर, तुलजापुर में पाई जाती हैं इनका रंग 70% कला होता हैं और 30% सफेद यह भूरे रंग के होते हैं इनका शरीर का आकर बड़ा होता हैं और पेअर लम्बे लम्बे होते हैं
यह नस्ल की बकरिया 16 से 19 महीने की उमर में बच्चा देती हैं यह साल में 2 से 3 बार बच्चे दे सकती हैं ओस्मनाबादी बकरियों को ज्यादा तर मांस और दूध के लिए इस्तेमाल में लाया जाता हैं इनकी पर्जन्य छमता अच्छी होने के कारन यह बहुत ही लोकप्रिय बकरी की नस्ल में से एक हैं
यह बकरिया एक दिन में कम से कम 1 से 1.5 लीटर दूध देती हैं और यह किसी में मौसम यह सूखे की स्थिति में भी आराम से रह सकती हैं इनका मांस बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं और यह नस्ल की बकरी की मांग लोगो में बहुत ज्यादा हैं यह बकरी की कीमत 4 से 6 हज़ार तक होती हैं अपने बकरी फार्म में पालन कर के आप यह बकरी से ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं
विदेशी बकरियों की प्रमुख नस्लें (Major breeds of foreign goats )
बोअर (Boer) :–बोअर नस्ल की बकरी 1 9 00 के दशक में मांस उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीका में विकसित की गई थी “बोअर” शब्द का मतलब अफ्रीका भाषा में किसान होता हैं यह बकरी को दूध और मांस के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं यह बकरी पूरी दुनिया में मांस के लिए लोकप्रिय नस्लों में से एक माना जाता हैं
यह बकरिया की बढ़ने की छमता बहुत ज्यादा होता हैं यह तीन महीना में 30 से 35 kg की हो जाती हैं और सब से बड़ी बात यह की इसे हर मौसम में ढलने और बिमारी से लड़ने की गज़ब की छमता होती हैं
बोअर बकरी ज्यादा तर सफ़ेद रंग और उसका सर भूरा होता हैं और उनके लम्बे लटकते हुये कान होते हैं इनमें बढ़ने और बच्चा देने की छमता सब बकरियों से अलग होती हैं बोअर बकरा ज्यादा तर प्रजनन के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं यह बकरी बहुत ही ज्यादा महंगी होती हैं क्युकी यह भारत में बहुत ही काम पाई जाती हैं
अल्पाइन (Alpine) :- यह स्विटजरलैंड की है. यह मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त है. इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्रों में औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है.
एंग्लोनुवियन (Anglo-Nubian) :- यह प्रायः यूरोप के विभिन्न देशों में पायी जाती है। यह मांस तथा दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता 2-3 किलो ग्राम प्रतिदिन है।
सानन ( Saanen ):- यह स्विटजरलैंड की बकरी है। इसकी दूध उत्पादन क्षमता अन्य सभी नस्लों से अधिक है। यह औसतन 3-4 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन अपने गृह क्षेत्रों में देती है।
टोगेनवर्ग (Toggenburg) :- टोगेनवर्ग भी स्विटजरलैंड की बकरी है। इसके नर तथा मादा में सींग नहीं होता है। यह औसतन 3 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है।
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